Sunday 19 July 2020

जो कुछ भी है; है, अवश्य है।

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न चले, केवल स्थिर रहे तो भी चलती हवायेँ और बरसता पानी किसी के भी अस्तित्व को तब तक घटाता चला जाता है जब तक वह शून्य न हो जाये|

किसी भी दिशा में चले तो धरातल का घर्षण और जुड़ जाता है चलती हवाओं और बरसते पानी के साथ अस्तित्व को शून्य बना कर मिटाने के लिये|


तो क्या करे कोई?

यही कि चलता रहे, चलता रहे, चलता रहे| चलते रहने से मनुष्य बहुत कुछ गतिमान रख सकता है, इस जगत को शून्य न होने देने के लिये|

यही हमारा प्रारब्ध है, उपयोग है, उद्देश्य है, नियति है। है, है, है, जो कुछ भी है; है, अवश्य है।



प्रमोद कुमार शर्मा

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