Tuesday 16 February 2016

अभावहीन जीवन

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मनुष्य की प्रकृति, प्रकृति की तरह ही होनी चाहिये; सहज, उदार और अनुशासित। इन गुणों में से किसी एक का भी अभाव न केवल स्वयम को, वरन आस पास के वातावरण को भी अभावग्रस्त बनाता है।


प्रकृति अपने ही नियमों से बद्ध है और उनके अनुसार ही स्वतः के संचालन के लिए सतत प्रयत्नशील रहती है। परिस्थितियों की अनुकूलताएं उसे उत्साहित और प्रमुदित तो करती है परंतु असावधान नहीं कर पातीं। इसी प्रकार प्रतिकूलताएं संघर्ष तो अवश्य करातीं हैं, परंतु उत्साहहीनता, निराशा, चिंता, आक्रोश आदि से उसे मुक्त रख शक्तिह्रास का कारण नहीं बनतीं। प्रकृति न तो किसी वस्तु के लिए  लालायित ही रहती है और न उदासीन; वह सहज ही रहती है।  प्रकृति स्वतः को अंकुरित, पल्लवित, पुष्पित आदि करने लिए जितना आवश्यक हो उतना रख कर, शेष फल आदि दान कर देती है; यही उसकी उदारता है।

न तो किसी ने प्रकृति को विश्राम करते हुये देखा है और न किसी नियम को तोड़ते हुये, और न वह कभी थकित या चिन्तित ही दीखती है; उसका अनुशासन ही उसकी लय है।

सहजता, उदारता तथा अनुशासन का बंधन ही प्रकृति का प्रबंधन है, जिसमे अभाव या असफलता का कोई स्थान नहीं है।


प्रमोद कुमार शर्मा

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