जनकल्याण को ध्यान में रखते
हुये यदि वैश्वीकरण का ईमानदार अर्थ लिया जाये तो वह “परस्परावलम्बन” पर आकर टिक
जाता है, आत्मनिर्भरता तक तो कभी पहुँच ही नहीं सकता| महात्मा गांधी ने देश की आज़ादी
को अंग्रेजों के सत्ता परिवर्तन के रूप में न देख कर खादी और ग्रामोदयोग द्वारा स्वावलंबी
भारत के अभ्युदय के रूप में देखा था। आज़ाद भारत में तो हमने 1965 का पाकिस्तान से
युद्ध भी देखा, फिर एक 2020 में एक कोरोना संक्रमण देखा| 1965 में श्री लाल बहादुर
शास्त्री ने सप्ताह में एक बार उपवास रखने और आँगन में सब्जी उगाने की बात की थी
और 2020 में मोदी जी “आत्मनिर्भरता” की बात कर रहे हैं| समस्या के मूल में विश्व के
देशों के स्वार्थ हैं, जो किसी भी आपदा काल में सतह पर आ सकते हैं| अर्थात, कोई वैश्विक
आपदा हो या विश्वयुद्ध, वैश्वीकरण की सोच में निहित परस्परावलम्बन की भावना (यद्यपि
यह अब तक लगभग नगण्य ही पाई गई है) का संवर्धन तो नहीं करती|
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Tuesday, 2 June 2020
Tuesday, 16 January 2018
BASIC EDUCATION FOR INDIA
From
Vishnugupta Chanakya to Mohandas
Karamchand Gandhi, many gave much thought to the subject of early education of
an Indian child. Gandhi existed after about 2300 years of Chanakya, but they
both were original thinkers who very sincerely thought about the welfare of the
people belonging to their respective immediate surroundings, the former about
his country and the latter about the kingdom he belonged to.
Tuesday, 31 October 2017
STAY WITH AN IDEA
We, human
beings have the ability to explore, to investigate, to contemplate and to sift
out what we may consider to be the truth of the things that surround us in this
life. We, human beings have the ability to imitate, to learn things from what
goes on around us, to retain, for a little time or more, from others’
experiences or from that of our own, or from what is piercingly flashed
repeatedly into our minds. We know, perhaps a little more about our own
experiences than that of the others, because others’ experiences are formed
when the others were present, not us. In ultimate, analysis, we have infinite
permutation and combination of what we attentively learn or happen to learn
passively, accidentally or are forced to learn circumstantially.
Wednesday, 20 September 2017
संगठन का कुलबुलाता छत्ता
क्यों होते
हैं मनुष्यों के समूह संगठित? प्रायः ऐसा तभी होता है जब कोई
मनुष्य किसी विचार को कार्यरूप में परिणत करने का संकल्प कर लेता है, और उसे लगता है की व्यक्तिगत प्रयासों द्वारा ऐसा करना संभव नहीं। पर, क्या किसी संकल्प पूर्ति के लिये सर्वप्रथम संगठन बनाना सर्वश्रेष्ठ उपाय
है? इसके उत्तर में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि ‘शायद नहीं’।
Wednesday, 19 July 2017
अच्छा पड़ोसी [2]
ऐसा
पड़ोसी, जिसका मन
अशान्त रहता हो, अपने पड़ोसियों की बुद्धि को भ्रमित कर उनके
उत्थान में बाधक बनता है। मन की अशान्ति का मूल कारण है, संतोष
का अभाव। मन की अशान्ति यदि केवल जीवन-यापन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति न हो सकने
के कारण ही हो, तो अशान्त-मन पड़ोसी के संबंध में अधिक निराश होने
की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि, स्थितियों
के अनुकूल होने पर मनुष्य अपने बुद्धिबल, श्रम और कर्मठता द्वारा
अपनी भौतिक समस्याओं का समाधान ढूंढ ही लेता है।
Tuesday, 11 July 2017
NO RELIGION SHOULD BE USED AS A FAULT FINDING SYSTEM
Spirituality
has everything to do with exploration
of the truth. A religion has much, if not everything, to do with acceptance of
the truth. Most religions often try to separate the truth from what is not the
truth. They invariably try to glorify the truth on the one hand, and, on the
other, to demean the untruth.
Monday, 8 May 2017
Sunday, 23 April 2017
ओढा हुआ दर्द है भारत में शिक्षा की कमी
जिस
देश में प्राचीन काल से ही ज्ञान-विज्ञान को मानव जीवन में
सर्वोच्च स्थान दिया गया हो, उस देश को यदि देश में शिक्षा
की अवस्था और व्यवस्था के संबंध में चिंता करने की आवश्यकता प्रतीत हो, तो इसे विडम्बना के अतिरिक्त कुछ नहीं कहा जा सकता। ज्ञानी ऋषियों, जगत के हितों के लिये जीवन को समर्पित करने वाले संत स्वरूप पूर्वजों ने
मानव समाज के हर वर्ग के मनोविज्ञान और बुद्धि के रुझान को ध्यान में रख कर
ज्ञान-विज्ञान के प्रचार और प्रसार लिये
जिस सहज-ग्राह्य और सर्व-ग्राह्य परम्परा की स्थापना की, उसे
विदेशी आक्रमणकारियों ने लालची एवं हिंसक प्रवृत्ति से उपजी दुर्बुद्धि के वशीभूत
होकर नष्ट करने में कोई कसर न छोड़ी।
Tuesday, 11 April 2017
जनतंत्र का अधिकार-काल
जब
राजाओं, सामंतों, जमीदारों और रईसों को अपने कर्तव्यों का
भान न रहा और वे केवल अपने ही स्वार्थों और सुख-सुविधाओं की पूर्ति हेतु अपने अधिकारों
के विस्तार के लिये अधिकारों की सीमा का उल्लंघन करने लगे,
तब प्रतिक्रिया स्वरूप जनतंत्र की अवधारणा अंकुरित हुई। यही कारण है कि जनतंत्र के
विचार को भी जन जन के अधिकारों का स्वाभाविक पोषक मान कर ‘निष्पक्ष
चुनाव प्रक्रिया’ को ही जनतंत्र कि पहली और आख़िरी शर्त मान
लिया गया।
Thursday, 26 January 2017
वन्दे मातरम्।
वन्दे मातरम्।
सुजलाम् सुफलाम् मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलाम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। १।।
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। २।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम्।। ३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वम् हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।। ४।।
त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलाम् अमलाम् अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम्।। ५।।
श्यामलाम् सरलाम् सुस्मिताम् भूषिताम्,
धरणीम् भरणीम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। ६।।
सुजलाम् सुफलाम् मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलाम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। १।।
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। २।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम्।। ३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वम् हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।। ४।।
त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलाम् अमलाम् अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम्।। ५।।
श्यामलाम् सरलाम् सुस्मिताम् भूषिताम्,
धरणीम् भरणीम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। ६।।
Monday, 9 January 2017
IN PRAISE OF AN EXTRA-DEMOCRATIC COMPULSION
For the
most population of the world what we have been able to achieve in the name of
democracy is nothing but effective autocracy or aristocracy of a few more than
who ruled the kingdoms say, two centuries ago. This is a view that appeals to
the common sense of a very big majority of the world population. This view
overlaps, only in a way, on how a UK based Economic Intelligence Unit
categorizes democracies of the word under four types, which are Full Democracies,
Flawed Democracies, Hybrid Regimes and Authoritarian Regimes. According to the
latest report from the said unit only 8.9% of the world population has accepted
fair amount of political pluralism to govern itself.
Tuesday, 27 December 2016
Thursday, 15 December 2016
A DEMOCRATIC REVOLUTION
Autocracy,
aristocracy or democracy; none of them, can be de-linked from human mind,
intellect, ego and desire. The man’s compulsion to live in groups made him to
form his societies. And, to minimize the conflicts between the members of a
society arising out of the play of mind, intellect, ego and desire in
individuals, the man invented religions, social systems and political systems.
While individuals’ qualities, whether godlike or devil like, influenced the evolution
of religions, social norms or social systems; man’s intellect had a larger role
to play in forming of political systems.
Wednesday, 16 November 2016
जय श्रीराम [5]
ॐ
नमो भगवते उत्तमश्लोकाय नम आर्यलक्षणशीलव्रताय
नम
उपशिक्षितात्मन उपासितलोकायनमः साधुवाद निकषनाय
नमो
ब्रह्मण्यदेवाय महापुरुषाय महाराजाय नम इति॥
{श्रीमद्भागवत...5.19.3}
राम सरीखे चरित्र के संबन्ध
में कुछ भी कहना सूर्य को प्रकाशित करने या उसे अंधकार में छुपाने जैसा है। साधुवाद
निकषनाय का अर्थ होता है अच्छाई/भलाई/बड़ाई को कसौटी पर कस के देखना कि वास्तव में
वह साधुवाद योग्य है भी या नहीं? यदि राम ने धोबी के कथन की उपेक्षा
कर सीता के त्याग जैसा हृदय-विदारक निर्णय न लिया होता तो?
Tuesday, 8 November 2016
जय श्रीराम [4]
ॐ
नमो भगवते उत्तमश्लोकाय नम आर्यलक्षणशीलव्रताय
नम
उपशिक्षितात्मन उपासितलोकायनमः साधुवाद निकषनाय
नमो
ब्रह्मण्यदेवाय महापुरुषाय महाराजाय नम इति॥
{श्रीमद्भागवत...5.19.3}
नमः
उपशिक्षितात्मने... इसका अर्थ है- जिसने अपने मन को अपना शिष्य
बना लिया हो। चंचल मन ही अधिकांश उपद्रवों का कारण है। मन में मनुष्य का गुरु बनने
की क्षमता तो नहीं है। परंतु उसे (मनुष्य) को जीवन पर्यन्त अपने आकर्षण के पाश में
बांधने की ऐसी क्षमता है जो किसी और में नहीं। जिस किसी ने भी अपने जीवन को सही
दिशा देने का किंचित भी प्रयास किया हो वह जनता है कि मन को संयमित किए बिना थोड़ी
सी भी प्रगति नहीं कि जा सकती।
Thursday, 3 November 2016
जय श्रीराम [3]
ॐ
नमो भगवते उत्तमश्लोकाय नम आर्यलक्षणशीलव्रताय
नम
उपशिक्षितात्मन उपासितलोकायनमः साधुवाद निकषनाय
नमो
ब्रह्मण्यदेवाय महापुरुषाय महाराजाय नम इति॥
{श्रीमद्भागवत...5.19.3}
सीता स्वयंवर आयोजन में
राम का भाग लेना न तो किसी पारिवारिक आदेश का पालन था और न किसी राजकीय आदेश का।
इसका विचार राम के मन में भी अंकुरित नहीं हुआ था। यह तो एक ऋषि का, विश्वामित्र का विचार था। यह सही है कि सीता को देख कर उनसे जुड़ने कि
इच्छा राम के अन्तर्मन में प्रस्फुटित हो चुकी थी, फिर भी
उन्होने इसे कर्तव्य मानते हुये स्वयं को गुरु के अनुशासन में बांधे रखा तथा इस
सम्पूर्ण आयोजन में शिष्य-धर्म, पुत्र-धर्म, क्षत्रिय-धर्म, भविष्य के पति-धर्म तथा अयोध्या एवं
जनकपुर के प्रजाधर्म का यत्न पूर्वक पालन किया, साथ ही साथ वे
भ्रातृ-धर्म को भी न भूले। यह एक अवसर था जब न केवल अनेक सामाजिक धर्मों के
निर्वाह का उत्तरदायित्व उन पर आन पड़ा था, वरन अनेकों
पारम्परिक त्रुटियों का समाधान भी उन्हें करना था; जो उन्होने
किया।
Tuesday, 1 November 2016
जय श्रीराम [2]
ॐ
नमो भगवते उत्तमश्लोकाय नम आर्यलक्षणशीलव्रताय
नम
उपशिक्षितात्मन उपासितलोकायनमः साधुवाद निकषनाय
नमो
ब्रह्मण्यदेवाय महापुरुषाय महाराजाय नम इति॥
{श्रीमद्भागवत...5.19.3}
जिसका प्रायः सभी
सम्मानपूर्वक स्मरण करें ऐसे व्यक्ति को ‘उत्तमश्लोकाय’ कहा जा सकता है। जिसने अपने विचार, व्यवहार तथा शब्दों को सदैव श्रेष्ठतम लक्षणों से युक्त रखने का व्रत ले
रखा हो, ऐसा व्यक्ति ‘आर्यलक्षणशीलव्रताय’ कहा जाएगा। स्तुति की प्रथम पंक्ति में ऐसे राम का नमन किया गया है। किन्ही
गुणों को पूरी तरह अपने जीवन में उतारने का व्रतपूर्वक प्रयत्न करते रहने से ही
चरित्र का निर्माण होता है। व्रतभंग होने की दशा में प्रायश्चित तो होना ही चाहिए, वह भी इतना कठोर कि भविष्य में व्रतभंग कि संभावना ही न रहे।
Thursday, 27 October 2016
जय श्रीराम [1]
ॐ
नमो भगवते उत्तमश्लोकाय नम आर्यलक्षणशीलव्रताय
नम उपशिक्षितात्मन
उपासितलोकायनमः साधुवाद निकषनाय
नमो ब्रह्मण्यदेवाय
महापुरुषाय महाराजाय नम इति॥
{श्रीमद्भागवत...5.19.3}
जब आदिदेव विश्वनाथ की
निर्गुण ब्रह्म में स्थिति और श्रीकृष्ण की ब्रह्म में रति, साधारण मनुष्य की समझ से परे हों तो वह किस प्रकार उनका अनुकरण करे? शिव और कृष्ण को समझने के लिए चित्त की जितनी शुद्धि की आवश्यकता है, वह आसान नहीं है। मनुष्य को अनुकरण के लिए किसी न किसी आदर्श की आवश्यकता
तो होती ही है।
Thursday, 20 October 2016
FEUDALISM IN THE MOLD OF DEMOCRACY
Notwithstanding the lofty talks about individual
freedom, the modern man has failed to assume even the ‘political command’ over
himself. Mahatma Gandhi was almost adamant about carrying on with a definition
of freedom on the basis of Sanskrit/Hindi word Swa + Tantra = Swatantra.
‘Swa’ means, one’s own and ‘Tantra’ means a binding system.
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