Saturday 5 September 2015

शक्तियाँ नहीं, गुण

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मैं आज तक यह नहीं समझ पाया कि मैं ईश्वरी शक्तियाँ प्राप्त करने के लिए साधना या तपस्या जैसा क्यों करूँ। ईश्वरी नियम ईश्वर के लिए तो हैं नहीं, वे तो जीव, मुख्य रूप से मनुष्य के लिए हैं। मानव द्वारा अपने नियमों का पालन कराना, यह तो ईश्वर को आता ही होगा; इसमें छेड़-छाड़ करना, मेरी समझ में तो हिमाक़त ही है।


ईश्वर को पूर्ण-रूपेण समर्पित ज्ञानी जनों ने शास्त्रों में ईश्वरीय गुणों कि अवधारणा की है, जो मानव को ईश्वरीय नियमों के पालन में सहायता तो करती ही है, उस ओर प्रेरित भी करती है। क्या मानव-धर्म उन गुणों के आचरण के अतिरिक्त किसी और रूप से समझा और समझाया जा सकता है? क्या उन गुणों का आचरण छोटा और आसान काम है?

मेरी छोटी सी बुद्धि तो यही स्वीकार कर पाती है कि अपनी असीमित शक्तियों का उपयोग ईश्वर ही करे और मानव अपने कर्तव्यों, अपने धर्म की चिंता करे।


प्रमोद कुमार शर्मा

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