Thursday 14 July 2016

VAGDEVI SPIRITUAL PROCESS [#16163] नियति

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श्वर की स्थिति तथा उसकी कल्पना दोनों ही विलक्षण हैं। विलक्षण शब्द के अर्थ बिना किसी लक्षण वाला तथा अनंत लक्षणों वाला दोनों ही होते हैं। जब एक ही अनंत में परिवर्तित हो जाए या एक के ही अनेक प्रतिबिंब दीख पड़ें तो ऐसा ही होता होगा।


ईश्वरेच्छा और मनुष्य के पुरुषार्थ का पुण्यफल है नियति। ईश्वरेच्छा में तो दोष की गुंजाइश ही नहीं; पुरुषार्थ भी सद्प्रवृत्ति तथा निवृत्ति से उपजे सहज मनुष्य कर्म हैं।

सौभाग्य या दुर्भाग्य मनुष्य की अभिलाषाओं और आकांक्षाओं, सांसारिक वास्तविकताओं तथा मानव-मन की अनुभूतियों की एक ऐसी जलधारा है, जिससे मनुष्य की प्यास कभी नहीं बुझती।

सत्यरूप ईश्वर की परिकल्पना या स्थिति पर विश्वास, स्वतः के पुरुषार्थ पर विश्वास तथा समर्पित भाव से नियति को मानव जीवन के पुण्यफल के रूप में सहर्ष स्वीकार करने पर शुभ संकल्प तो बने रहते हैं, पर न तो कोई प्यास लगती है और न उसे शांत करने की आवश्यकता ही पड़ती है।


प्रमोद कुमार शर्मा

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