Thursday, 27 October 2016

जय श्रीराम [1]

Leave a Comment

नमो भगवते उत्तमश्लोकाय नम आर्यलक्षणशीलव्रताय
नम उपशिक्षितात्मन उपासितलोकायनमः साधुवाद निकषनाय
नमो ब्रह्मण्यदेवाय महापुरुषाय महाराजाय नम इति॥
{श्रीमद्भागवत...5.19.3}

जब आदिदेव विश्वनाथ की निर्गुण ब्रह्म में स्थिति और श्रीकृष्ण की ब्रह्म में रति, साधारण मनुष्य की समझ से परे हों तो वह किस प्रकार उनका अनुकरण करे? शिव और कृष्ण को समझने के लिए चित्त की जितनी शुद्धि की आवश्यकता है, वह आसान नहीं है। मनुष्य को अनुकरण के लिए किसी न किसी आदर्श की आवश्यकता तो होती ही है।
 

जिस प्रकार मनुष्य का व्यक्तिगत व्यवहार उसके जन्म, जीवन और अंत की स्वाभाविक प्रक्रिया से अछूता नहीं रह सकता, उसी प्रकार उसका सामाजिक व्यवहार परस्परावलंबन, करुणा, वैराग्य तथा हिंसात्मक प्रवृत्तियों के आक्रोशपूर्ण प्रतिकार के बिना कष्टदायी बन जाता है। कोई भी जीवन दर्शन जो मात्र करुणा पर आधारित हो, या  मात्र वैराग्य पर आधारित हो अथवा केवल बुराइयों के आक्रोशपूर्ण प्रतिकार पर निर्भर करता हो, उसके सामाजिक जीवन को संतुलित नहीं रख सकता।

ईश्वर के अनेक अवतारों में राम ही एक ऐसे अवतार हुये हैं जो  साधारण से साधारण मनुष्य के लिए भी आदर्श बन सकते हैं। अवतार अवतरित होते रहें है बुराइयों के अंत के लिए, विनाशकरी शक्तियों का संहार करने के लिए या धर्म के ह्रास को रोकने के लिये। साधारण मनुष्य नृसिंहावतार या परशुराम अवतार को तो आदर्श बना नहीं सकता। कृष्ण भी अपने अवतार में ईश्वर की तरह व्यवहार करते है। मनुष्य अर्जुन को आदर्श मान कर किसी कृष्णावतार से शिक्षा ग्रहण तो कर सकता है, परन्तु स्वयं ईश्वर को आदर्श मान लेना उसके लिये कठिन है।

इस लेख के आरंभ में श्रीमद्भागवत से राम की एक सुंदर स्तुति प्रस्तुत की गई है, जिसमें राम के उन विशेष गुणों का वर्णन है जिन्हें आदर्श मान कर मनुष्य अपने चरित्र का निर्माण कर सकता है। आदर्श प्रजातन्त्र तो वह होगा जब राज्य विलीन हो जाएगा, और जो बचेगा वह प्रजा ही होगी; राजधर्म जैसा कुछ नहीं बचेगा, जो बचेगा वह प्रजाधर्म होगा। आंशिक प्रजातन्त्र में भी प्रजा के अनेक राजधर्म तो होंगे ही। अतः, राम का राजधर्म भी एक सीमा तक अब प्रजा के लिए अनुकरणीय आदर्श बन चुका है।

जय श्रीराम का उद्गार भले ही किसी प्रत्यक्ष या परोक्ष उद्वेग अथवा प्रतिक्रिया का प्रतिफल हो, वह अनायास ही लोककल्याण हेतु प्रस्तुत हो चुका है।

इस आलेख के अगले तीन-चार भागों में हम राम के उन गुणों पर चर्चा करेंगे जो मनुष्य के लिए अनुकरणीय हैं।


प्रमोद कुमार शर्मा

0 comments:

Post a Comment

Cool Social Media Sharing Touch Me Widget by Blogger Widgets