Tuesday 20 December 2016

VAGDEVI SPIRITUAL PROCESS [#16180] अन्तर्मन की चुनौती ही चुनौती है

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सांसारिक चुनौतियाँ तो मनुष्य हो या पशु-पक्षी, सभी के समक्ष उत्पन्न होती हैं। सभी अपनी योग्यता के अनुसार उनका सामना भी करते हैं। निःसन्देह मनुष्य अपनी बुद्धि के कारण सांसारिक चुनौतियों  का सामना इस प्रकार करना चाहता है कि भविष्य में कम चुनौतियाँ उपस्थित हों जिससे उसको अपना जीवन आनंदपूर्वक व्यतीत करने का अवसर मिल सके। मानव जाति का इतिहास तो यह दर्शाता है कि जहां मनुष्य ने अपने समूहिक भौतिक जीवन की चुनौतियों को कम करने तथा आसान करने में सफलता प्राप्त की है, वहीं वैयक्तिक जीवन को इतना अधिक उलझा लिया है कि वह स्वयं को हर ओर से उपस्थित चुनौतियों से आतंकित हुआ ही पाता है।


प्रश्न यह है कि क्या जगत के सर्वश्रेष्ठ जीव, मनुष्य, ने अपने जीवन पर शासन करने में सफलता पाई है जिसकी उसे सदा ही इच्छा रही है? किसी भी काल में और किसी भी परिस्थिति में सदैव एक ही उत्तर मिला है, “मानव की लौकिक सफलतायें सदा ही क्षणभंगुर ही रहीं हैं”। दूसरा प्रश्न है, “तो क्या मनुष्य भौतिक सफलताओं के लिए प्रयत्न ही न करे?” उत्तर है, “आवश्यक्तानुसार अवश्य करे। परंतु अन्तर्मन से संवाद कर यह निश्चित करे कि लौकिक जीवन की कौन सी आवश्यकताएँ उसके लिए बोझ बन उसे आतंकित कर सकती हैं और कौन सी आवश्यकतायेँ उसके जीवन को सहज और सरल बना सकती हैं

मनुष्य की बुद्धि, ज्ञानेंद्रियाँ तथा कर्मेन्द्रियां उसे वाह्य जगत की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूर्ण रूप से सक्षम बनातीं है, यह सिद्ध हो चुका है। यह भी समझा जा चुका है कि वाह्य चुनौतियों की जटिलता अथवा बुद्धि की न्यूनता असफलता का उतना बड़ा कारण नहीं बनतीं जितना बुद्धि भ्रम बनता है। और, बुद्धि भ्रम का प्रमुख कारण अन्तर्मन से संवाद का अभाव है। यह समझना अधिक कठिन नहीं कि मन, बुद्धि, अहंकार, इंद्रियाँ तथा क्षुद्र कामनाएँ आदि  अन्तर्मन से संवाद को बाधित करने में कोई कसर नहीं छोडतीं, जिसके कारण अन्तर्मन से संवाद कर पाना एक विशाल चुनौती बन जाता है।

क्या मनुष्य सब कुछ जानते बूझते हुये भी इतना साहसी नहीं हो पाता कि अपने जीवन के संबंध में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेकर अपने जीवन को सार्थक बनाये और दूसरों के लिए उदाहरण बने? क्या भेड़ों की तरह दूसरी भेड़ों का अनुसरण करते हुये गड्ढे में गिरना उसे अधिक सुरक्षित लगता है?

यह एक विडम्बना है की मनुष्य भौतिक चुनौतियों का सफलता पूर्वक सामना करने के बाद भी आज तक आनंदमय और शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने में असमर्थ रह कर भी अन्तर्मन से संवाद स्थापित करने से कतराता ही रहा है। आधुनिक मानव को यह सोचना ही होगा कि अन्तर्मन से संवाद करने की क्षमता का विकास सार्थक और शांतिमय जीवन के लिए उठाया गया पहला चरण है, जिसे रख कर आगे बढ़ना ही श्रेयस्कर है, अन्यथा खोखले और दिखावटी भौतिक जीवन का आतंक उसके लिए असहनीय हो जाएगा।


प्रमोद कुमार शर्मा

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