गणतन्त्र
दिवस अखंड भारत में स्वशासन की जनतान्त्रिक परंपरा की स्थापना
का पर्व है। इस उत्सव को राजधानियों और मुख्यालयों में उत्साह पूर्वक मनाना बहुत
अच्छा तो है पर संभवतः पर्याप्त नहीं।
सम्पूर्ण देश में अनेकानेक
छोटे छोटे समूह जैसे पाठशालाएं, स्कूल,
विद्यालय, कार्यालय, कारखाने, अस्पताल, निर्माण संस्थाएं, सेवा
केंद्र, ग्राम-इकाइयाँ आदि सतत कार्यरत हैं, जिनके पारिश्रम और पराक्रम से ही देश चलता है। यदि गणतन्त्र दिवस को
ये सभी इकाइयाँ अपने राष्ट्रीय-वार्षिकोत्सव के रूप में मनायें तथा वर्ष भर के विशिष्ट
कार्यकर्ता का सर्वसम्मति से चयन कर उसे सम्मानित करें और उससे ही ध्वजारोहण कराएं; साथ ही साथ अपनी-अपनी इकाई की उपलब्धियों के विवरण जहां तक हो सके अन्य इकाइयों
को भी उपलब्ध कराएं तो गणतन्त्र के प्रति कर्तव्य-भावना का आवश्यक प्रसार किया जा सकता
है। इस कार्य को भारत इस प्रकार कर सकता है कि विश्व के सामने सच्ची जनतान्त्रिक प्रक्रिया
का उदाहरण उपस्थित हो सके।
देश का प्रत्येक नागरिक देश
की उपलब्धि है। देश की प्रत्येक इकाई को देश के लिये प्रेरणा- स्रोत के रूप में लिया
जाना चाहिए। देश की इकाइयों का अपना-अपना गणतन्त्र दिवस पर आयोजित राष्ट्रीय
वार्षिकोत्सव सरलता से देश के मानव संसाधन विकास से जोड़ा जा सकता है, तथा इस गणराज्य के उचित विकास हेतु उत्साहपूर्ण वातवरण निर्मित किया जा सकता
है। यह विश्वास किया जा सकता है कि देश और प्रदेश की सरकारें भी जनता की सृजनात्मक
अभिरुचि और प्रयासों को देख कर उपलब्ध संसाधनों भी उपलब्द्ध कराएंगी। जनकल्याण की भावना
की भव्यता उसके शिखरों की ऊंचाई से नहीं, उसके प्रसार से नापी
जानी चाहिए।
वंदे मातरम।
प्रमोद कुमार
शर्मा
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