अच्छा पड़ोसी वह है जो अपने
पड़ोसी के साथ वैसा ही व्यवहार करता हो जिसकी अपेक्षा वह अपने पड़ोसी से करता हो। ‘अच्छे पड़ोसी’ की यही पारिभाषा सर्वाधिक प्रचलित है।
पड़ोसी का अर्थ अपने निवास
के निकट रहने वाले व्यक्ति-समूह से विस्तृत कर स्वदेश के नागरिकों तक ले जाना
प्रजातन्त्र के इस युग में उचित होगा, क्योंकि
प्रजातन्त्र की स्थापना ही इच्छापूर्वक व्यक्ति के समष्टि में समर्पण की सोच से
हुई है। वैसे भी वर्तमान में वही देश सुखी है किसके नागरिक एक दूसरे के साथ अच्छे
पड़ोसियों सा व्यवहार करते हों। अन्यथा जिस देश में अधिक भेद-भाव पनपता हो वहाँ
सुख-चैन की कमी तो होगी ही।
जिस देश के अधिकांश नागरिक
अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति श्रमपूर्वक करते हुये सादगी से रहते हों, वहाँ भेद-भाव और वैमनस्य की संभावना अधिक नहीं होती। परंतु जहां ऐसे लोग
भी हों जो बिना श्रम किये अपार सुख सुविधा और दिखावट का जीवन जीते हों या जहां ऐसे
लोगों की संख्या अधिक हो जो अत्यधिक श्रम के बाद भी अपनी दैनिक आवश्यकताओं की
पूर्ति न कर पाते हों, वहाँ भेद उत्पन्न करने वाले छोटे छोटे
कारण भी असहनीय वैमनस्य को जन्म दे नर्क जैसी स्थितियों का निर्माण कर सकते हैं।
किसी भी प्रकार की असहिष्णुता को सुलगाने के लिए अन्यायपूर्ण आर्थिक असमानता से
अच्छा ईंधन कोई नहीं।
जीवनयापन के लिये मिलजुल
कर श्रम करने से अच्छा कोई उपाय नहीं; इससे आत्मसम्मान
बढ़ता है, प्रेम भी बढ़ता और दूसरे के प्रति सम्मान भी।
शारीरिक एवं मानसिक शक्ति का सर्वश्रेष्ठ उपयोग है, ईमानदारी
और सहयोग से जीवन की दैनिक आवश्यकताओं को लगभग निश्चिंत हो न्यूनतम बाधाओं के साथ पूरा
करने में सफल हो पाना।
यह लेख कुछ शोधों, अनेक विचारों और अनुभवों पर आधारित है।
PROMOD KUMAR SHARMA
[The writer of this blog is also the author of “Mahatma A
Scientist of the Intuitively Obvious” and “In Search of Our Wonderful Words”.]
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