जब हम अपने मन के बंधनों से किसी सीमा तक मुक्त सा हो जाते हैं
तो हम अपनी बुद्धि पर अधिक आधारित हो जाते हैं। और, जब हम
बार बार मन की पुकार को नकार कर बुद्धि पर अधिक निर्भर होने का प्रयत्न करने लगते हैं
तो मन भी छल से बहुत कुछ उलटा पलटा करने को तत्पर हो जाता है।
कभी-कभी लक्ष्य की पूर्ति में सहायक व्यावहारिक जीवन के अवसर भी विचित्र रूप
आधे-अधूरे मन से किसी मार्ग विशेष को चुनने के लिये बाध्य करने लगते हैं। ऐसी स्थितियों
में दृढ़ संकल्प व्यक्ति हठपूर्वक निश्चित किये मार्ग पर अग्रसर होने लगते हैं।
हठपूर्वक कुछ भी करने से करने की सहजता और आनंद नष्ट होने लगता
है। शायद, आध्यात्म के मार्ग में सहजता का विशेष स्थान
है। संकल्प में सहजता आसान नहीं। इधर कुआं उधर खाई वाली स्थिति रहती है।
प्रमोद कुमार शर्मा
9 सितंबर 2019
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