Friday, 31 March 2017

देव और दैत्य हमारे आस-पास ही हैं

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संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो जीवन पर्यन्त, उचित-अनुचित किसी भी मार्ग को अपना कर, सुख सुविधा का सामान एकत्रित कर  एवं अन्य लोगों से विभिन्न प्रकार  के संबंध बना कर, अपने मन और शरीर को प्रसन्न रखने  में व्यस्त रहते हैं।


संसार में ऐसे लोगों की बहुलता नहीं, जो इस संसार में उपलब्ध वस्तुओं और अन्यों के साथ सम्बन्धों के अस्थायित्व को पहचान कर इन सबसे दूर हो, जीवन के सत्य की शोध हेतु जीवन को अर्पित कर एवं करुणावश दूसरे के दुखों को कम करने के लिये जो बन सके, उसे करने के यत्न तक का ही अतिसीमित संबंध जगत से इस कारण बनाये रखते हैं कि कौन जाने सत्य किस रूप में दर्शन दे दे।

संसार में कुछ मनुष्य ऐसे भी पाये जाते हैं जो अन्य मनुष्यों के दर्शन, श्रवण तथा उनके बारे में मनन, चिंतन कर, उनके दोषों के शोध को अपने जीवन का ध्येय बना कर परनिंदा, छिद्रान्वेषण, दूसरों पर दोषारोपण आदि द्वारा प्राप्य कुटिल और आसुरी आनन्द की अनुभूति को ही सुख का स्रोत मानते हैं।

तीनों ही प्रकार के लोग मूलतः मनुष्य ही हैं। पहले वे हैं, जिन्होने जीवन तो पा लिया, पर कुछ सीखा नहीं। दूसरे वे हैं जो वह सबकुछ सीखने का प्रयत्न कर रहें हैं, जो सीखने योग्य है। तीसरा प्रकार उनका है, जिन्होने वही सीखा जो सीखना अनुचित और निषिद्ध था।

हम यदि अपने आस पास देखें तो तीनों प्रकार के लोग मिल जायेंगे, जिनमें से हम अपने चरित्र निर्माण हेतु दृष्टांत खोज सकते हैं।


प्रमोद कुमार शर्मा 

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