ॐ
नमो भगवते उत्तमश्लोकाय नम आर्यलक्षणशीलव्रताय
नम
उपशिक्षितात्मन उपासितलोकायनमः साधुवाद निकषनाय
नमो
ब्रह्मण्यदेवाय महापुरुषाय महाराजाय नम इति॥
{श्रीमद्भागवत...5.19.3}
राम सरीखे चरित्र के संबन्ध
में कुछ भी कहना सूर्य को प्रकाशित करने या उसे अंधकार में छुपाने जैसा है। साधुवाद
निकषनाय का अर्थ होता है अच्छाई/भलाई/बड़ाई को कसौटी पर कस के देखना कि वास्तव में
वह साधुवाद योग्य है भी या नहीं? यदि राम ने धोबी के कथन की उपेक्षा
कर सीता के त्याग जैसा हृदय-विदारक निर्णय न लिया होता तो?
तो
संभवतः नारी सम्मान जैसे सहज मानवीय गुण का मूल्य अन्य किसी गौण ऐतिहासिक संदर्भ की
भांति अविचारित ही रह जाता। संभवतः सीता-त्याग
का बोझ भारतीय जनमानस को आज भी नारी के उचित स्थान की ओर सोचने को बाध्य करता है। कोई
भी विचार, कर्म या आचरण बड़ाई के योग्य है अथवा नहीं, इसका निर्णय बदली हुई पारिस्थितियाँ, समय और स्थान करते
हैं। हमारी साधारण मानव बुद्धि राम के आचरण में खोट ढूँढने में स्वयं को अयोग्य पाती
है।
ब्रह्मण्यदेवाय
महापुरुषाय महाराजाय नम...राम ईश्वर के अवतार थे, सत्य असत्य के स्वयं ज्ञाता थे। फिर भी राम ने उस मानव-वर्ग को जो सत्य के
शोध और प्रसार में एवं सभी जीवों के हितों की रक्षा के प्रति समर्पित हो, अपना मार्ग-दर्शक माना; उन्होने ब्राह्मण को ही महापुरुष
माना। सभी प्रकार से सक्षम होते हुये भी योग्य और ज्ञानी जनों से अपने विचारों तथा
कर्मों का अनुमोदन कराते रहने से दिग्भ्रम भी नहीं होता और न अभिमान पतन का कारण बनता
है।
‘जय श्रीराम’
मात्र ईश्वर का स्मरण नहीं, सन्मार्ग पर चल कर कर्तव्यों का निर्वाह
करने की चेतना का निरंतर पोषण भी है।
जय श्रीराम।
जय जय श्रीराम।
प्रमोद कुमार
शर्मा
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