इसमें संदेह नहीं कि शुद्ध और कल्याणकारी विचार जब तक कार्यरूप में परिवर्तित हो कर शुभ फल न देने लगें उनकी श्रेष्ठता संदिग्ध ही रहती है, परन्तु अशुद्ध विचारों से मानव कल्याण की किंचित भी अपेक्षा रखना वैसा ही है जैसे अंधकार को प्रकाश का स्त्रोत मानना।
हर शुद्ध और कल्याणकारी विचार
के पीछे अनगिनत कर्मठ, चरित्रवान एवं निःस्वार्थ व्यक्तियों
के त्याग और तपस्या का योगदान होता है, जिस पर हम ध्यान ही नहीं
देते। हम केवल यह सोच पाते हैं कि कोई उत्तम विचार किसी एक के बौद्धिक श्रम का परिणाम
है। आजकल तो लोग ownership of thought की बात करते हैं, जो एक कृतघ्न मानसिकता का परिचायक
है।
समष्टि के कल्याण के लिये, समष्टि द्वारा विचारित, समष्टि के द्वारा आयोजित और
समष्टि के द्वारा संपादित कर्मों का फल ही शुभ होता है; इसमें
न तो किसी एक के विचारों का कोई श्रेय होता है है और न किसी एक व्यक्ति के कर्मों का।
शुभ फल भी समष्टि के लिये ही होता है। किसी एक को प्राप्त फल की शुभता भी संदिग्ध ही
होती है।
प्रमोद कुमार
शर्मा
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