विश्वास, अंधविश्वास और दुराग्रह से सर्वथा अलग होता है।
अंधविश्वासी में प्रश्न करने की क्षमता ही नहीं होती और दुराग्रही में स्वयं से प्रश्न
करने का साहस ही नहीं होता। इसके विपरीत विश्वास करने वाला व्यक्ति स्वयं से प्रश्न
करते करते उस बिन्दु पर आकर ठहर जाता है, जहां उसे विश्वास
के संबंध में प्रश्न करने की आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती, उल्टे
विश्वास पर संदेह के संबंध में प्रश्न कर उसके कारणों के निवारण की अनिवार्यता पर उसका
ध्यान केन्द्रित रहता है।
विश्वास बुद्धि-संयम से जन्मी
वह स्थिति है, जो बुद्धि-विलास से मुक्त हो चुकी हो। कुछ को बुद्धि
संयम कठिनाई से प्राप्त होता है और कुछ को अनायास ही मिल जाता है। तभी कुछ यह भी मानते
हैं कि विश्वास ईश्वर-कृपा से ही मिलता है।
प्रमोद
कुमार शर्मा
[The writer of this blog is also the author of “Mahatma A
Scientist of the Intuitively Obvious” and “In Search of Our Wonderful Words”.]
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