प्रकाश
यों
तो अस्तित्व प्रकाश का ही होता है, अंधकार का नहीं। वास्तव में प्रकाश का अभाव ही अंधकार है।
जीवन
पर्यंत अपने जीवन से, अपने परिवेश से, अंधकार दूर करने के
सतत प्रयत्न के उपरांत ही प्रकाश दीख पड़ता है। यह विडम्बना ही है कि जगव्यापी प्रकाश
सर्व-सुलभ होने के बाद भी हमारे लिये अत्यंत दुर्लभ हो गया है। संभवतः हमने एक अनुभव
और अनुभूति के विषय को अध्ययन, चिंतन और शास्त्रार्थ का विषय
बना दिया है।
आधुनिक
जीवन में सिखाने की प्रवृत्ति सीखने की प्राकृतिक और स्वतः स्फूर्त प्रवृत्ति पर हावी
होती जा रही है और निवृत्ति के प्रकाश का अभाव हमें घेर चुका है।
तमसो
मा ज्योतिर्गमय
प्रमोद कुमार शर्मा
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