जन्म
से मृत्यु पर्यन्त प्रपंच का जो अखण्ड सिलसिला चलता है वह पल भर भी नहीं रुकता; यह अनुभव जो भी, जब कभी
भी कर पाता है, वह ही, अपनी मन-बुद्धि के
सही उपयोग की दिशा में अग्रसर हो सकता है। वह अपनी मन-बुद्धि का सही उपयोग करता भी
है अथवा नहीं या कितने समय तक करता है, यह कह पाना बहुत कठिन
है। हाँ, जीवन के अखण्ड प्रपंच का भान न होने की स्तिथि में मन-बुद्धि
के भ्रमपूर्ण उपयोग का पाखंड अनवरत चलता ही रहता है।
जीवन
के अखण्ड प्रपंच का भान होने के बाद ही आध्यात्मिक विचार की संभावना बनती है, अन्यथा अन्य किसी भी उपाय द्वारा आध्यात्मिक
ज्ञान की संभावना नहीं बनती।
यों तो
हर कोई सुख प्राप्ति के प्रयत्न में या सुख प्राप्ति की आशा में जी लेता है; कोई कोई अपने जीवनानुभवों का नगाड़ा पीटने का
सुख भी प्राप्त कर लेता है; पर वह अपनी मन-बुद्धि का उचित उपयोग
किए बिना ही मर जाता है। ऐसी मृत्यु तो पशु भी प्राप्त कर लेते हैं।
प्रमोद कुमार शर्मा
0 comments:
Post a Comment