न चले, केवल स्थिर रहे
तो भी चलती हवायेँ और बरसता पानी किसी के भी अस्तित्व
को तब तक घटाता चला जाता है जब तक वह शून्य न हो जाये|
किसी भी दिशा में चले तो धरातल
का घर्षण और जुड़ जाता है चलती हवाओं और बरसते पानी के साथ अस्तित्व को शून्य बना कर
मिटाने के लिये|
तो क्या करे कोई?
यही कि चलता रहे, चलता रहे, चलता रहे| चलते रहने से
मनुष्य बहुत कुछ गतिमान रख सकता है, इस जगत को शून्य न होने देने के लिये|
यही हमारा प्रारब्ध है, उपयोग है, उद्देश्य है, नियति है। है, है, है, जो कुछ भी है; है, अवश्य है।
प्रमोद कुमार शर्मा
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